Q.

Answer by Shwetabh Pathak :-

सर्वप्रथम हमें समझना होगा कि वैष्णव किसे कहते हैं ।

सामान्य परिभाषा में या मोटे मोटे तौर पर यह माना जाता है कि जो भगवान विष्णु से सम्बंधित उपासना करते हैं या उन्हें मुख्य मानते हैं वह वैष्णव हैं और भगवान शिव को मानते हैं वह शैव और जो शक्ति की उपासना करते हैं वह शाक्त ।

परन्तु यह छोटे बच्चों के लिए है जिन्होंने अभी अभी प्रवेश किया है । अभी उनका स्तर नहीं आया है समझने के लिए इसलिए।

वैष्णव का अर्थ है जो प्रत्येक स्थान पर भगवान ( चाहे वह विष्णु ,शिव , शक्ति कोई भी हो ) उनका अनुभव करता है , प्रत्येक जीव में भगवान को ही देखता है या कण कण में उन्हीं का आभास करने का अभ्यास करता है वह वैष्णव है ।

विष्णु का अर्थ है वि: + अणु

जो अणु अणु में व्याप्त हो । और जो इस भावना को दृढ़ करता है कि भगवान कण कण में व्यापित हैं वह वैष्णव है।

अब आते हैं धाम पर ।

जब भगवान धरा पर अवतार लेते हैं तो वह अपने रूपः, गुण , लीला , धाम और अपने जन को लेकर आते हैं । और जब जाते हैं तो यह सब छोड़कर जाते हैं लेकिन जो दिव्य रूप , नाम , लीला ,धाम , गुण और अपने जन हैं , उनको लेकर जाते हैं ।

जो यहाँ रहता है वह मात्र भौतिक स्वरूप होता है जिसका सम्बल लेकर भक्त जन साधना करते हैं ।

भगवान सर्वत्र व्याप्त हैं समान रूप से। जो भगवान भौतिक वृ दावन में हैं वही भगवान अफ़ग़ानिस्तान में भी हैं।

लेकिन दिव्य धाम होता है वहाँ भगवान व्याप्त नहीं होते ।

क्या ??????????

मतलब ये कैसे ???

हाँ भगवान व्याप्त नहीं होते ।

धाम में स्वयं भगवान ही सब कुछ बनते हैं। वहाँ का आकाश , पेड़ पक्षी मोर , हवा , रंग , जड़ चेतन सभी भगवान होते हैं या उनके संत जन होते हैं । वहाँ माया का प्रवेश नहीं होता । गोलोक में तो ऐश्वर्य का भी प्रवेश नहीं है।

वृन्दावन में भी ऐश्वर्य का प्रवेश नहीं है।

जो पृथ्वी पर वृन्दावन है वह भौतिक वृन्दावन है। दिव्य वृन्दावन हमें मायिक आंखों से नहीं दिखेगा । वह जब अंतःकरण शुद्ध होगा तभी दिखेगा ।

धाम क्या है ? भक्तों के हृदय में नित्य भगवान का निवास है , वह धाम है।

आजकल लोगों में बहुत भ्रांति है कि धाम में सभी सुवर मच्छर से लेकर ब्रज वासी सभी सौभाग्यशाली हैं। ऐसा नहीं है ।

वृन्दावन काशी मथुरा अयोध्या यहाँ सब मायिक जीव हैं जो काम क्रोध लोभ मोह से ग्रसित हैं। यहाँ हत्यारा , बलात्कारी से लेकर संत महापुरुष भी रहते हैं।

जो सुवर विष्ठा में लोट लगा रहा है उसे तो पता ही नहीं कि यह वृन्दावन है और इसका क्या महत्व है।

एकमात्र अधिकारी लोग ही इसका महत्व और लाभ ले पाते हैं।

एक बात स्वर्ण अक्षरों में note कर लीजिये , बार बार revise कर लीजिए कि बिना साधना के बिना भक्ति के आप चाहे भगवान की गोद मे ही क्यों न बैठे हों ,आप भगवान का लाभ और उनका आनंद नहीं ले सकते ।

बिना साधना के कुछ नहीं होगा। यह बाह्य वृन्दावन है। भौतिक , स्थूल और माया से ग्रसित है। जो रोग हमारे में है वही मायिक रोग इनमें भी है बल्कि ज्यादा ही है क्योंकि यह घमंड और अहंकार है कि हम ब्रज वासी हैं।

ब्रज वासी का अर्थ है कि निरंतर ब्रज में वास्य करना । वास करने का अर्थ है कि मन आपका निरंतर भगवान में लगा हो।

ये भौतिक रूपः से शरीर को निवास नहीं देना है । मन को देना है। भग्वान को शरीर से कोई मतलब नहीं , एकमात्र मन से है ।

और मन बिना साधना के नहीं सधता और कुछ नहीं प्राप्त होगा ।

हॉं बस एक लाभ यह होता है भौतिक धाम में निवास करने का की संसार वालों की अपेक्षा आपको उनसे ज्यादा भगवान का नाम , कथा सुनने को मिलेगा और रह रह कर उनका चिंतन आता रहेगा ।

बस यही एक लाभ है भगवान के भौतिक धाम में निवास करने का कि यहाँ जो संत जन हैं उनके अमृत वचनों को सुनकर कभी तो बुद्धि में निश्चयात्मक भाव आएगा और हम संसार से आसक्ति हटाकर अपना भगवद्मार्ग पर चल पड़ेंगे ।

अन्यथा धाम में रहने वाले सबसे ज्यादा लूट खसोट मचाते हैं ,यह सबको पता है।

और सब हीनतर योनियों में जाएंगे।

इसलिए एकमात्र साधना करिये और अपने हृदय को काशी अयोध्या और वृन्दावन बनाइये । फिर जहाँ आप हैं वहाँ स्वयमेव वृन्दावन दौड़ा चला आएगा ।

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